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मार्च 2024

संपादकीय

दक्षिण एशिया के लोकतांत्रिक देशों में यह चुनाव का वर्ष है। पहले बांग्लादेश, फिर मालदीव और अब पाकिस्तान। तीनों ही देशों के चुनावों में स्थानीय मुद्दे हावी थे, लेकिन चर्चा के केन्द्र में भारत ही रहा। यह एशिया में बदलते शक्ति संतुलन का संकेत है। बांग्लादेश में चुनाव जहां भारत से मित्रता और विरोध के नारों के बीच हुआ, वहीं चीन भी नेपाल और म्यांमार के रास्ते बांग्लादेश की ओर पहुंच बना रहा है। चीन के उकसावे पर मालदीव भी भारत विरोध की नीति पर अड़ा है। पाकिस्तान का तो जन्म ही भारत-विरोध के आधार पर हुआ है। हाल ही में सम्पन्न आम चुनाव में जीते शाहवाज शरीफ ने अपनी नई पारी की शुरुआत ही भारत विरोध से की। कश्मीर की तुलना फिलिस्तीन से करते हुए उन्होंने दोनों की स्वतंत्रता का प्रस्ताव पारित करने की बात भी कही। स्पष्ट है कि पाकिस्तान अपने शीतयुद्ध के समय के बोझ से उबर कर विकास के मार्ग पर चलने को आज भी तैयार नहीं है।

दूसरी ओर स्वाधीनता के प्रारंभिक दशकों में लादे गए बोझ को भारत ने अपनी नियति मानकर कभी स्वीकार नहीं किया। यही कारण है कि पीड़ित पक्ष होते हुए भी भारत ने अपनी विकास यात्रा जारी रखी और अनुकूल अवसर एवं सक्षम नेतृत्व प्राप्त होते ही उसने नए कीर्तिमान गढ़ने प्रारंभ कर दिए, जिसे देखकर विश्व हतप्रभ है। पाकिस्तान की उपनिवेशकालीन सोच के विपरीत भारत ने अमृतकाल का संकल्प लेकर वैश्विक रंगमंच पर योग्य नेतृत्व का प्रदर्शन किया है।

यही नहीं, स्वतंत्र भारत के इतिहास के सबसे कठिन दौर में, जब भारत को अपने कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए रिजर्व बैंक के स्वर्ण भण्डार को गिरवीं रखना पड़ा था, तव भी भारत ने अपनी सीमाओं के साथ समझौता नहीं किया और संसद के दोनों सदनों ने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर जम्मू-कश्मीर के भारत का अभिन्न अंग होने तथा पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले भू-भाग (पीओजेके) को वापस लेने की क्षमता और इच्छाशक्ति होने का सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया था।

इस संकल्प के तीन दशक पूरे हुए हैं तो इसकी चर्चा एक बार फिर प्रारंभ हुई है। वर्तमान राष्ट्रीय नेतृत्व पर देश का अटूट विश्वास है। गत वर्षों में राष्ट्रीय आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए जिस प्रकार ठोस निर्णय लिए गए हैं, उसने आशा जगायी है कि भारत के अधिक्रांत भू-भाग भी फिर से भारत का अंग बनेगें। हाल ही में राजधानी में सम्पन्न विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय अधिवेशन में पीओजेके में तिरंगा फहराने की जो गूंज उठी, उसने परिषद कार्यकर्ताओं के मन को स्पर्श किया है। संसद में लिए गए संकल्प के तीन दशक पूरे होने को निमित्त मानकर कार्यकर्ताओं की जानकारी के लिए, स्वतंत्र भारत के इतिहास के इस सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न की ओर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया गया है।

पश्चिम बंगाल के संदेशखाली से जहां चिंतित करने वाली खबरें आ रही हैं, वहीं उत्तराखण्ड में समान नागरिक संहिता की पहल संतोष देने वाली है। आगामी लोकसभा चुनावों के पश्चात भी सकारात्मक परिवर्तन की निरंतरता बनी रहे, इसके लिए अभाविप कार्यकर्ता छात्र-युवाओं के बीच अधिकतम मतदान का संदेश लेकर जाने के लिए सन्नद्ध हैं।

शुभकामना सहित

आपका

संपादक

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