अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) ने आपातकाल की 50वीं बरसी पर दिल्ली विश्वविद्यालय परिसर में एक विशाल मशाल यात्रा निकालकर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान 1975 में लगाए गए आपातकाल की विभीषिका एवं दमन की क्रूर स्मृतियों को स्मरण किया। मशाल यात्रा रामजस कालेज से आरंभ हुई तथा कला संकाय, दौलत राम कालेज, श्रीराम कालेज एवं विधि संकाय से होते हुए क्रांति चौक पर जाकर संपन्न हुई।
देश यह नहीं भूला है कि 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू किया था। आपातकाल के समय लोकतांत्रिक संस्थाओं, मानवाधिकारों एवं संविधान प्रदत्त मूल्यों का हनन किया गया और युवाओं, छात्रों, नेताओं एवं आम नागरिकों पर दमनकारी कार्रवाईयां की गईं। तत्कालीन समय में अभाविप ने इंदिरा सरकार की तानाशाही के विरुद्ध अग्रिम पंक्ति में संघर्ष किया था I इस कड़ी में अभाविप प्रत्येक वर्ष 25 जून के दिन को “संविधान हत्या दिवस” के रूप में स्मरण करती है।
आपातकाल की बरसी पर दिल्ली विश्वविद्यालय परिसर में निकाली गई विशाल मशाल यात्रा में हिस्सा लेने वाले अभाविप कार्यकर्ताओं एवं छात्रों को सम्बोधित करते हुए अभाविप के राष्ट्रीय महामंत्री डा. वीरेंद्र सिंह सोलंकी ने कहा कि आपातकाल भारतीय गणराज्य पर सत्ता के अहंकार द्वारा लादे गए तानाशाही के वह 21 माह थे, जिसमें भारत का लोकतंत्र सांसें गिन रहा था। उस कालखंड में जब बोलना अपराध था, तब अभाविप कार्यकर्ताओं ने महज पोस्टर चिपकाने के अपराध में जेलें भरीं, भूमिगत रहकर चेतना जगाई और लोकतंत्र की दीपशिखा को बुझने नहीं दिया। जब हम आपातकाल की 50वीं बरसी पर खड़े हैं, तब यह स्मरण करना जरूरी है कि अभाविप का संघर्ष केवल सत्ता के विरुद्ध नहीं था -वह भारत की आत्मा, संविधान की गरिमा, और युवाओं के भविष्य के लिए था। आज की युवा पीढ़ी को यह संकल्प दोहराना है कि भारत किसी भी रूप में अधिनायकवाद को स्वीकार नहीं करेगा, और अभाविप सदैव लोकतंत्र, स्वतंत्रता और राष्ट्रहित की रक्षा के लिए अग्रिम पंक्ति में खड़ी रहेगी I
इस अवसर पर राष्ट्रीय मंत्री शिवांगी खरवाल ने कहा कि आपातकाल केवल असहनीय यातनाओं या मानवाधिकारों के उल्लंघन की स्मृति भर नहीं है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र की मूल आत्मा को रौंदने एवं भारत की वैश्विक छवि को धूमिल करने का अध्याय भी है। अभाविप ने आपातकाल का हर समय विरोध किया है एवं उसकी स्मृतियों को जनमानस के समक्ष लाने के लिए कार्यक्रम आयोजित किए हैं। यह मशाल यात्रा उसी क्रम का एक सशक्त प्रयास है, जिसके माध्यम से लोकतंत्र की रक्षा के संकल्प को पुनः दोहराते हैं।