स्वतन्त्र भारत के इतिहास में काले अध्याय के रूप में 1975 से 1977 तक देश पर थोपे गए आपातकाल की पचासवीं बरसी पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) गोरखपुर महानगर द्वारा “आपातकालीन संघर्ष गाथा” संगोष्ठी का आयोजन किया गया I संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य आपातकाल जैसे ऐतिहासिक प्रसंगों से युवाओं को अवगत कराना एवं लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा हेतु संघर्ष करने वाले सच्चे सेनानियों को सामाजिक मान्यता देना रहा। कार्यक्रम ने न केवल इतिहास को पुनर्जीवित किया, बल्कि वर्तमान पीढ़ी को भी उसकी चेतना से जोड़ने का कार्य किया। कार्यक्रम में आपातकाल के दौरान जेल में बंद रहे मीसा बंदियों को सम्मानित भी किया गया।
संगोष्ठी में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रांत प्रचारक रमेश ने मुख्य वक्ता के रूप में हिस्सा लिया, जबकि दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. पूनम टंडन, समाजसेवी डा. संजयन त्रिपाठी, विकास अग्रवाल, प्रांत अध्यक्ष डा. राकेश प्रताप सिंह, प्रांत मंत्री मयंक राय, महानगर अध्यक्ष डा. विवेक शाही , महानगर मंत्री शुभम गोविंद राव सहित बड़ी संख्या में अभाविप के कार्यकर्ता कार्यकर्ता उपस्थित रहे I कार्यक्रम में मीसा बंदी चिरंजीव चौरसिया, शीतल पाण्डेय, राजेश गुप्ता सहित अनेक मीसा बंदियों को “मीसाबंदी-लोकतंत्र रक्षक सम्मान” प्रदान करके सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें कृतज्ञता के प्रतीक के रूप में प्रदान किया गया ताकि आने वाली पीढ़ियां उनके संघर्ष से प्रेरणा ले सकें।
संगोष्ठी में प्रांत प्रचारक रमेश ने कहा कि पचास वर्ष पहले 25 जून 1975 को भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काला अध्याय उस समय जोड़ा गया, जब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने देश में आपातकाल लागू किया I आपातकाल में प्रेस की स्वतंत्रता का गला घोटा गया, नागरिक स्वतंत्रताओं का हनन हुआ और हजारों निर्दोष लोगों, जिन्हें ‘मीसा बंदी’ कहा गया, को जेलों में अमानवीय यातनाएं दी गईं। इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने अपनी सत्ता बचाने के लिए जिस तरह से संवैधानिक प्रावधानों का दुरुपयोग किया, वह भारतीय लोकतंत्र पर एक अमिट धब्बा है। लेकिन सभी को अब लोकतंत्र की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध होकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भविष्य में कोई भी राजनीतिक दल ऐसी निरंकुशता थोपने का दुस्साहस न कर सके।
संगोष्ठी में गोरखपुर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने 25 जून 1975 के दिन को भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काला अध्याय बताते हुए कहा कि तत्कालीन सरकार ने आपातकाल लागू कर लोकतंत्र का गला घोंट दिया था। उन्होंने अभाविप द्वारा चलाए जा रहे उस राष्ट्रव्यापी अभियान की प्रशंसा की, जिसका उद्देश्य आपातकाल के दौरान हुए अत्याचारों और संविधान पर हुए हमलों की सच्चाई को उजागर करता है। समाजसेवी डा. संजयन त्रिपाठी ने कहा कि यह अभियान युवाओं को हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति जागरूक करेगा और उन्हें भविष्य में ऐसे किसी भी तानाशाही कदम के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रेरित करेगा। संगोष्ठी में आभार व्यक्त करते हुए विकास अग्रवाल ने कहा कि अभाविप यह सुनिश्चित करने के लिए प्रशंसनीय कार्य कर रही है कि इन बलिदानों को कभी भुलाया न जाए। कार्यक्रम में मुख्य रूप से आरएसएस गोरक्ष प्रांत के सह-प्रचारक सुरजीत, अभाविप की राष्ट्रीय कार्यकारी की विशेष आमंत्रित सदस्य प्रो. उमा श्रीवास्तव भी उपस्थिति रहीं।